Sunday, 5 May 2013




कशमकश



कल  शहर मे बारिश हुई थी .....

पहली  बूंद  की  छुअन –
यूँ   लगा  जैसे
तुम्हारे  गीले  गेशू
मुझसे  आ लिपटे  हो ......

अनवरत होती  बारिश  की  छम- छम
जैसे  नुपूर पहने तुम
मेरे पास आ रही  हो 



शबनम - स्नात  दरखतों  पर चमकती
मार्तंड  की  किरणे
जैसे  चान्दनी रात मे
तेरी  बलिया हिली   हो

धवल आसमा में  सज़ा
चमकीला  इंद्र-धनुष
चटकीले रंगो  की  साड़ी   में 
जैसी  तुम लगती  हो......

कशमकश  में    हूँ   मै-
कि इस शहर के बारिश मे
कोई  जादू  है

या फिर
    मुझे मोहब्बत हो गयी है .....?

                                        - नील कमल 
           ( यूको टावर ; अंक 26  में प्रकाशित )













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