थी जिन्दगी मेरी
एक बेहतरीन किताब-
सुंदर कविताओं से भरी,
खुले में मेज पर रखी
सब के लिए सुलभ,
कुछ लोगों ने इसे पढ़ा
अंतिम पन्ने तक
और मुग्ध हो गए,
कुछ ने नोच डाले इसके पन्ने,
अपनी गंदी ऊँगलियों से
भद्दा किया इसका अक्स,
किताब की इतनी बुरी हालत
मुझे मंजूर नहीं,
मैंने सहेज दी है
इसे बंद आलमारी में
अब सर्व-सुलभ नहीं
ये किताब
अब लोग
इसे पढ़ नहीं सकते ।
- © नील कमल 15.01.2016
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