Thursday, 4 February 2016

लप्रेक सा कुछ 02

और अगर कह दूँ कि वो तुम हो फिर ?

हो ही नहीं सकता ! मैं जानती हूँ खुद को । तुमने अपनी कविताओं में जितनी तारीफें लिखीं हैं, मैं उतनी सुंदर कहाँ ? बनाओ मत मुझे। सच बताओ न । कौन है वो ?

होठ खामोश हो गये थे मेरे । आँखें अब भी कह रही थीं- हाँ ! तुम हो ! तुम ही तो हो । जिसे चाहा है मैंने पागलों की तरह । कितनी हिम्मत से कह सका एक बार । काश ! तुम समझ पाती ।

वो जिद करती रही देर तक। बताओ न ! कौन है वो ? वह फिर से अपना नाम सुनना चाह रही थी । देखना चाह रही थी कि कविता के हर्फों में कितनी सुंदर लगती है वो ।


#लप्रेक सा कुछ 02

© नील कमल  04.02.2016


यूको टावर के जनवरी - मार्च 2018 अंक में प्रकाशित



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