बस अभी - अभी
अभी - अभी
मेरी रुबाई पर रीझकर
तुमने एक गुलाब दिया है ....
मासुमियत में लिपटी मोहब्बत
मैं डायरी में सहेज लेता हूँ ...
पर अभी - अभी ही
जब डायरी के पन्ने पलटता हूँ
गुलाब के सुर्ख लाल पत्ते
बदरंग हो चुके हैं .....
उफ्फ ! शायद अर्सा बीत चुका हैं ...
- नील कमल
02/11/2012
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