Thursday 15 November 2012
इस दिवाली
माना तूने
इस दिवाली
तैयारी की है -
सूरज की आँखें चौधियाने की ,
माना आज
वो चाँद भी तेरी
रौशनी से ही रौशन होगा ....
बस एक गुजारिश मान मेरी
एक दीया उनके घर देना -
जिनके चौबारे
सूरज भी उजाले नहीं फेंकता
दर पर उनके एक दीया -
देहरी से जिनकी
रौशनी ने बेवफाई की है ...
एक दीया उनके घर भी -
जो अपनी आरजुओं की
मिल्कीयत से भी
बेदखल रहे ......
चाहा कभी जो जुगनू पकड़े
किस्मत रूठी , विफल रहे ........
है यही गुज़ारिश
बस इतनी - सी
देखना उनकी दुआएँ तेरी
रौशनी से चुन्धयाई
इन आँखों में
नमकीन - सी एक
चमक लाएगी ............
- नील कमल
13/11/2012 06:45 pm
Monday 5 November 2012
चवन्नी का जादू
मेरे दद्दा
एक चवन्नी में
ढाई सेर दूध लाते थे ......
दाल , चावल और देसी घी संग
खूब मौज उड़ाते थे .......
पर आज दद्दा की चवन्नी
खोटी हुई है
मुश्किल हमारे लिए
दो जून की रोटी हुई है .....
कभी दाल , कभी दूध
कभी रूठा प्याज़ है .......
महँगा है एल . पी . जी .
अभी भई पेट्रोल का राज है ..
चलो भगवान से मांगकर
दद्दा को बुला लाते हैं
उनके साथ मिलकर
चवन्नी का जादू चलाते हैं
जब तक आए वो तब तक -
जब तक आए वो तब तक -
भूल कर सारे गम
देते ढोल पर थाप हैं ,
रघुवीर कक्का संग
ले लेते अलाप हैं -
"सखी ! सैयां तो खूब ही कमात है
महंगाई डायन खाए जात है ...... "
- नील कमल
29 जून 2011 : 10:00 AM
( मेरे मित्र श्री नवेन्दु कुमार ने ये ब्लॉग visit करते हुए प्रसन्नता ज़ाहिर की और एक शिकायत भी किया .
कहा - भई ! तुम्हारी वो " चवन्नी " वाली कविता इस ब्लॉग पर नहीं है ...
दरअसल उन्होंने मेरी ये कविता पटना में 29 जून 2011 को Radio Mirchi 98.3 FM पर सुनी थी। R.J. उमंग ने लोगों से महंगाई पर उनकी राय जाननी चाही थी और मैंने अपनी राय कविता में सुना दी थी ............ तो श्री कुमार अब आपकी नाराज़गी दूर हो गयी होगी ...
और हाँ शुक्रिया ... मेरी कविता को इतने लम्बे समय तक अपने ज़ेहन में ज़गह देने के लिए ......)
Friday 2 November 2012
Thursday 1 November 2012
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