- इ गुलाब काहे लाए हो ?
- तोसे प्यार करते हैं न । इ वास्ते ।
- बौरा गए हो क्या ?
- अरे नहीं पगली ! आज भेलेनटाइन डे है न ! उ बाजार में देखे - जो जिसको प्यार करता है, उ उसको गुलाब दे रहा था । अब हम तो आजतक तुमसे ही प्यार किए हैं, सो तुम्हरे लिए ले आये । जानती हो एक-एक गुलाब पचास का बिक रहा था ।
- तो पचास रुपैया खर्च कर दिए का ? बबुआ के ट्यूशन वाला मास्टर को देते तो कोनो काम का बात होता । इ गुलाब का क्या है । अभी सूख जाएगा । चालीस के हुए और रत्ती भर की अकल नहीं ।
- अरे ! हमको बबुआ का फिकर नहीं है क्या ? पैसा मास्टर साहेब को ही देंगे । गुलाब खरीदे नहीं है । मन्दिर की पीछे वाली फुलवारी से पुजारी की नजर बचाकर तोड़ लाये हैं। मानते हैं कि चोरी किए हैं पर प्यार सच्चा है हमरा ।
- उ तो है । तब न तोहरे संग बीस बरस पहले भाग लिए थे । चलो हाथ-मुंह धो लो, खाना लगाते हैं ।
#लप्रेक सा कुछ -03
© नील कमल 14.02.2016
यूको टावर के जनवरी - मार्च 2018 अंक में प्रकाशित