Friday 8 February 2013

रोटी और सिक्के

बच्चों की परवरिश बेहतर हो , 
सोच - सोच -
बाप अपना जिस्म जलाता रहा .
पर जब बच्चे बड़े हुए 
सिक्के उसे परदेश ले गये .....


आज बड़का कमाता है -
उसकी थाली में रोटी है ,
घर पैसे भी भेजता है -
बाप की थाली में भी रोटी है ,

पर रोटी का टुकड़ा 
किसी की हलक से 
नीचे नहीं उतरता ...


बाप 
खूंटे पर बंधी 
गैया को बछड़े संग 
नाद में मुँह डुबाते देखता है 
उसका कलेजा मुँह को आता है ...
इसे देख 
माँ रोने लगती है ..


और बड़का सोचता है -
थाल में पड़ी रोटी 
सब साथ मिलकर तोड़े -
परमात्मा ऐसा दिन दिखाए 
तो गंगा नहाऊ ..
अब बहुरिया 
सुबकने लगती है .....


दोनों जबरदस्ती 
रोटी के टुकड़े 
मुँह में ठुसते  हैं .....


दोनों फुसफुसाते हैं - 
" इन मुए सिक्कों के मुँह आग लगे " ......





                                                                               - नील कमल 
                                                                                             07/02/2013      10:00 PM