Tuesday 21 May 2013

खालीपन 

" एक ग्लास अगर खाली है 
   तो उसमें क्या भरा है ? "

- पूछ रहा था एक विद्वान 
   गाँव में 
   घूम -घूम कर लोगों से ,


" अगर ग्लास खाली है  
   तो उसमें भरा है-
   उसका  खालीपन ,
    उसकी तन्हाई  "
- एक साहित्यिक  बोला I

" नहीं !
   अगर ग्लास खाली है
    तो 
    उसमें हवा भरी है  "
- विज्ञान का एक विधार्थी  चहका I


"पागल है  क्या ?
अगर  खाली ही है
तो फिर भरा क्या होगा -
ख़ाक ! "
- भीड़ बोली I


"सूरत है मेरे महबूब की !
  देखो उसका गोल - सा चेहरा ,
  उसकी नीली - नीली आंखें "
- एक आशिक गुनगुनाया I

उत्तर बदलते रहे  ,
विवाद बढ़ता गया  ,
मार -पीट की नौबत आ गयी ...

विद्वान ने जब चाहा 
बीच - बचाव करना 
भीड़ चिल्लाई -
" उटपटांग सवाल पूछता है 
मारो इसे ! "


सुना है -
सबने उसे मार  डाला  I


प्रश्न अब भी यथावत है I


हाँ !
ग्लास का खालीपन 
अब 
लोगों में भरा है I



                                        © नील कमल    18/05/2013    11:30 AM











Sunday 5 May 2013




कशमकश



कल  शहर मे बारिश हुई थी .....

पहली  बूंद  की  छुअन –
यूँ   लगा  जैसे
तुम्हारे  गीले  गेशू
मुझसे  आ लिपटे  हो ......

अनवरत होती  बारिश  की  छम- छम
जैसे  नुपूर पहने तुम
मेरे पास आ रही  हो 



शबनम - स्नात  दरखतों  पर चमकती
मार्तंड  की  किरणे
जैसे  चान्दनी रात मे
तेरी  बलिया हिली   हो

धवल आसमा में  सज़ा
चमकीला  इंद्र-धनुष
चटकीले रंगो  की  साड़ी   में 
जैसी  तुम लगती  हो......

कशमकश  में    हूँ   मै-
कि इस शहर के बारिश मे
कोई  जादू  है

या फिर
    मुझे मोहब्बत हो गयी है .....?

                                        - नील कमल 
           ( यूको टावर ; अंक 26  में प्रकाशित )