Wednesday 31 August 2016

लप्रेक सा कुछ -06

अरसे बाद फेसबुक पर अपना एक फोटो अपलोड किया था उसने । सेल्फ़ी थी वो। पाउट करते वक्त उसके कानों की गोल बालियाँ चमक उठीं थीं । बैक ग्राउंड में हरियाली थी, सन्नाटा था और दूर सूरज विदा ले रहा था । मैसेज कर बताया था उसने - फेसबुक पर फोटो डाला है अपना, देखकर बताना कैसी तस्वीर है ? पर प्लीज कोई कविता मत लिख देना । गुस्से में कोई रिप्लाई नहीं किया था मैंने । यूँ तो मेरी कविता की फरमाईश रहती है मैडम को पर फोटो पर लिखने से मना कर रही है । आधे घण्टे बाद कॉल किया उसने -"नो रिप्लाई मिस्टर?"
"तुमने ही मना किया था "
"तो अब कह दो"
"आई लव यू"

देर तक एक सन्नाटा पसरा रहा हमारे बीच ।वो मेरे लफ्जों के मायने समझती थी और मैं उसकी चुप्पी पढ़ सकता था ।

"क्या सचमुच तस्वीर इतनी सुंदर है ?"-उसने चुप्पी तोड़ी ।
"नहीं ! मुझे तुम्हारे सोने की बालियों से प्यार हो गया है ।"

दोनों ठठाकर हंस पड़े थे ।

उसने 'शेयर योर मेमोरी' में आज अपनी वही तस्वीर शेयर की है । फेसबुक बता रहा है कि आज पांच बरस बीत गए हैं ।


 #लप्रेक सा कुछ -06

© नील कमल  31.08.2016

Thursday 9 June 2016

लप्रेक सा कुछ - 05

05

- "हेलो ?
- हाँ हेलो ! अरे तुम ?

- तुम अब तक मेरी आवाज पहचानती हो ?
- ह्म्म्म्म ! मैं तुम्हारी ख़ामोशी भी पहचानती हूँ ।"



 #लप्रेक सा कुछ - 05

© नील कमल  09.06.2016


Friday 6 May 2016

कविता - 01

कई किताबें हैं-
आधी पढ़कर छोड़ी हुई,
कई फ़िल्में हैं-
आधी देख कर छोड़ी हुई,
कई कविताएँ हैं-
आधी लिख कर छोड़ी हुई...

और इन्हीं में कहीं मैं हूँ
कई टुकड़ों में बिखरा हुआ ,
जिस दिन इन्हें पूरा कर दूंगा
उसी दिन पूरा हो जाऊंगा मैं भी।

© नील कमल

06/04/2016

Saturday 12 March 2016

लप्रेक सा कुछ - 04

- "हैप्पी बर्थ डे नीरा"
- "थैंक यू पतिदेव ! पर मेरा गिफ्ट कहाँ है ?"
- "गिफ्ट के लिए तो तुम्हें मेरे स्टडी रूम में आना पड़ेगा ।"
- "तो आज भी कविता से ही काम चलाओगे पर मैं तो डायमंड या प्लेटिनयम एक्स्पेक्ट कर रही थी ।"
- "चलो तो सही"
- "ओके बाबा ! चलो "
- "इतने बड़े डिब्बे में क्या है ?"
- "खुद ही देख लो"
- "ओह! यह क्या है - कैनवास, ब्रश और रंगों की ट्यूब "
- "क्यों पसंद नहीं आया ?"
- "अच्छा है पर मैं अब पेंटिंग कहाँ करती ?"
- "तो करो न । फिर से शुरू करो । याद है - कॉलेज में मेरी हर कविता के लिए तुम एक पेंटिंग बनाती थी और तुम्हारी पेंटिंग्स पर मैं कविता लिखा करता था । लोग कहते थे- "टुगेदर वी आर कम्प्लीट "। मैं अब भी कलम घसीट रहा हूँ पर तुमने अपनी ब्रश छोड़ दी । तुम्हारे जन्मदिन पर मैं तुम्हें कोई गिफ्ट नहीं दे रहा, तुमसे कुछ माँग रहा हूँ - "मिसेज नील ! मुझे मेरी नीरा लौटा दो । बोलो न ! क्या ब्रश-रंगों वाली नीरा मुझे वापस मिलेगी ?"
- "यू मेड माय डे नील ! दीस इज द बेस्ट गिफ्ट आई हैव एवर गेट । (गले लगते हुए) जरुर मिलेगी, आपको आपकी नीरा जरुर मिलेगी, ये मिसेज नील का वादा है ।"

 #लप्रेक सा कुछ - 04

© नील कमल  12.03.2016


यूको टावर के जनवरी - मार्च 2018 अंक में प्रकाशित

 


Monday 29 February 2016

फरवरी का उनतीस

"चार सालों का फिक्स डिपोजिट
   मैच्योर हुआ है आज

                  फरवरी को ब्याज में
     एक पूरा दिन मिला है ।"

- © नील कमल

29/02/2016

Saturday 20 February 2016

यह कौन है



यह कौन है
जो
पसीने-से लथपथ
दिन भर की थकन से चूर
माथे की लाल बिंदी,
ताड़ के पेड़ों जैसे लम्बे झुमके
और हरी चूनर उतार
उतर रही है रात के जल में

रोज देखता हूँ इसे

यूँ ही ख़ामोशी-से गुम होते
और अगली सुबह
सूरज संग सज-संवर कर लौटते हुए

कौन है यह ?


- © नील कमल 19.02.2016

तस्वीर श्री Girindranath Jha जी के फेसबुक वाल से साभार

Sunday 14 February 2016

लप्रेक सा कुछ -03

- इ गुलाब काहे लाए हो ?
- तोसे प्यार करते हैं न । इ वास्ते ।
- बौरा गए हो क्या ?
- अरे नहीं पगली ! आज भेलेनटाइन डे है न ! उ बाजार में देखे - जो जिसको प्यार करता है, उ उसको गुलाब दे रहा था । अब हम तो आजतक तुमसे ही प्यार किए हैं, सो तुम्हरे लिए ले आये । जानती हो एक-एक गुलाब पचास का बिक रहा था ।
- तो पचास रुपैया खर्च कर दिए का ? बबुआ के ट्यूशन वाला मास्टर को देते तो कोनो काम का बात होता । इ गुलाब का क्या है । अभी सूख जाएगा । चालीस के हुए और रत्ती भर की अकल नहीं ।
- अरे ! हमको बबुआ का फिकर नहीं है क्या ? पैसा मास्टर साहेब को ही देंगे । गुलाब खरीदे नहीं है । मन्दिर की पीछे वाली फुलवारी से पुजारी की नजर बचाकर तोड़ लाये हैं। मानते हैं कि चोरी किए हैं पर प्यार सच्चा है हमरा ।
- उ तो है । तब न तोहरे संग बीस बरस पहले भाग लिए थे । चलो हाथ-मुंह धो लो, खाना लगाते हैं ।

 #लप्रेक सा कुछ -03

© नील कमल  14.02.2016

यूको टावर के जनवरी - मार्च 2018 अंक में प्रकाशित




Thursday 4 February 2016

लप्रेक सा कुछ 02

और अगर कह दूँ कि वो तुम हो फिर ?

हो ही नहीं सकता ! मैं जानती हूँ खुद को । तुमने अपनी कविताओं में जितनी तारीफें लिखीं हैं, मैं उतनी सुंदर कहाँ ? बनाओ मत मुझे। सच बताओ न । कौन है वो ?

होठ खामोश हो गये थे मेरे । आँखें अब भी कह रही थीं- हाँ ! तुम हो ! तुम ही तो हो । जिसे चाहा है मैंने पागलों की तरह । कितनी हिम्मत से कह सका एक बार । काश ! तुम समझ पाती ।

वो जिद करती रही देर तक। बताओ न ! कौन है वो ? वह फिर से अपना नाम सुनना चाह रही थी । देखना चाह रही थी कि कविता के हर्फों में कितनी सुंदर लगती है वो ।


#लप्रेक सा कुछ 02

© नील कमल  04.02.2016


यूको टावर के जनवरी - मार्च 2018 अंक में प्रकाशित



Sunday 24 January 2016

लप्रेक सा कुछ - 01

अरसे बाद अचानक मिले थे दोनों । आँखें चमक उठी थीं उनकी ।

- आज भी सुंदर दिखती हो !
- तो क्या एज वाइज ब्यूटी लॉस्ट हो जाती है ?
- नहीं ! वैसे दादी नहीं बनी हो अब तक !
- तुम्हें नहीं पता ? आई हैव टू ग्रेंड चिल्ड्रेन ।
- अच्छा ! तीस के उमर की क्वारी कन्या और नाती- पोते !
- क्यों नहीं ? वसुधैव-कुटुंबकम । खैर, मुझे छोड़ो,  तुम          अपनी सुनाओ , क्या लिख रहे हो इन दिनों ?
- कहाँ लिख पा रहा हूँ । तुम गई, मेरी कलम खाती गई !
- अच्छा !  तो कोई दूसरी कलम ले लेते ।
- सोच तो मैं भी रहा था पर...
- पर क्या ?
- कोई पसंद नही आई । आदत बहुत कुत्ती चीज होती है । है   न ?
- मुझे क्या मालूम ?
-  और तुमने शादी क्यों नहीं की अबतक..
-  अकेलेपन की आदत लग गयी है और तुमने कहा न कि आदत बहुत ....

खिलखिलाकर हँस पड़े दोनों । देर तक एक दूसरे को देखते रहे । यूँ तो शांत दिख रहे थे पर उनके अंदर बहुत कुछ उमड़ रहा था ।

#लप्रेक सा कुछ

© नील कमल 24.01.2016

यूको टावर के जनवरी - मार्च 2018 अंक में प्रकाशित





लप्रेक सा कुछ - 01

अरसे बाद अचानक मिले थे दोनों । आँखें चमक उठी थीं उनकी ।

- आज भी सुंदर दिखती हो !
- तो क्या एज वाइज ब्यूटी लॉस्ट हो जाती है ?
- नहीं ! वैसे दादी नहीं बनी हो अब तक !
- तुम्हें नहीं पता ? आई हैव टू ग्रेंड चिल्ड्रेन ।
- अच्छा ! तीस के उमर की क्वारी कन्या और नाती- पोते !
- क्यों नहीं ? वसुधैव-कुटुंबकम । खैर, मुझे छोड़ो,  तुम          अपनी सुनाओ , क्या लिख रहे हो इन दिनों ?
- कहाँ लिख पा रहा हूँ । तुम गई, मेरी कलम खाती गई !
- अच्छा !  तो कोई दूसरी कलम ले लेते ।
- सोच तो मैं भी रहा था पर...
- पर क्या ?
- कोई पसंद नही आई । आदत बहुत कुत्ती चीज होती है । है   न ?
- मुझे क्या मालूम ?
-  और तुमने शादी क्यों नहीं की अबतक..
-  अकेलेपन की आदत लग गयी है और तुमने कहा न कि आदत बहुत ....

खिलखिलाकर हँस पड़े दोनों । देर तक एक दूसरे को देखते रहे । यूँ तो शांत दिख रहे थे पर उनके अंदर बहुत कुछ उमड़ रहा था ।

#लप्रेक सा कुछ

© नील कमल 24.01.2016



Friday 15 January 2016

कविता

थी जिन्दगी मेरी
एक बेहतरीन किताब-
सुंदर कविताओं से भरी,
खुले में मेज पर रखी
सब के लिए सुलभ,


कुछ लोगों ने इसे पढ़ा
अंतिम पन्ने तक
और मुग्ध हो गए,
कुछ ने नोच डाले इसके पन्ने,
अपनी गंदी ऊँगलियों से 
भद्दा किया इसका अक्स,

किताब की इतनी बुरी हालत
मुझे मंजूर नहीं,
मैंने सहेज दी है
इसे बंद आलमारी में

अब सर्व-सुलभ नहीं
ये किताब
अब लोग
इसे पढ़ नहीं सकते ।


- © नील कमल 15.01.2016

सिक्कों का संसार

                                                सिक्कों का  संसार


वह ‌क्षीणकाय फटे- मैले चीथड़े ज़िस्म से लपेटे ट्रेन के डिब्बे में घुसा और झुककर एक आधी टूटी झाड़ू से बोगी की सफाई  करने लगा I सफाई पूरी होते ही वह हाथ फैलाता और लोग उसकी तरफ सिक्के उछाल देते I अब वह मेरे पास आया I अपने बटुए पर मैंने एक सरसरी निगाह डाली और उसकी तरफ मुख़ातिब होते हुए कहा – “ छुट्टे नहीं हैं I”  वह मुझे लगभग घूरता –सा आगे बढ़ गया I जब पैंट की ज़ेब में हाथ डाला तो देखा – दो रुपये का एक सिक्का पड़ा था I चाहा पुकार कर उसे दे दूँ पर वह ट्रेन से उतर चुका था I सिक्का मेरे हाथ में ही रहा I मैं किंकर्त्तव्यविमूढ़ था कि सामने बैठे एक ग्रामीण वृद्ध ने कहा – “चोर हैं सब के सब ! सफाई के बहाने सामान ताड़ने आते हैं I   “ अरे नहीं ! ये सब सिक्के जमा कर इनकी कालाबाजारी करते हैं I”  सूट- बूट पहने समझदार – सा दीखने वाला एक बंदा बोला I  बस क्या था , सब अपनी-अपनी राय लगे देने I उनकी बातें मेरे कानों से गुजर रही थी पर मैं अब भी उस सिक्के को निहार रहा था I अचानक मेरे मस्तिष्क में  विचारों की एक लंबी श्रृंखला उमड़ पड़ी I अपना बचपन याद आने लगा जब “ पहले बैटिंग कौन करेगा ? ” का फैसला यही सिक्का करता था I आइसक्रीम वाले के घंटी की  टुन-टुन  सुनकर अलमारियों के दराज़ों में सिक्के  ढ़ूढ़ना , पूजा की आरती की थाल के लिए बड़की भाभी का सिक्के संभाल कर रखना ,  ट्रेन के सफ़र में जब ट्रेन गंगा के उपर से गुजरती थी तो नानी का नदी में सिक्का फेंकना , मेरा दादाजी से सिक्के मांग कर उसे गुल्लक में जमा करना –विस्मृति की अंधेरी गलियों में भटकती सिक्कों की अनेक  यादें एकाएक सामने आकर कतार में  खड़ी होने लगी I

कहाँ खो गये साहब ! बड़े गौर से सिक्के को निहार रहे हैं I कुछ खास है इसमें क्या ?”  सामने की बर्थ पर बैठे एक सज्जन ने टोका “हाँ भई ! खास तो है I दरअसल सिक्के इस मायने में खास होते हैं कि ये अपने साथ कई कहानियाँ लिए चलते हैं I”  मुस्कुराते हुए मैंने कहा I  “ अच्छा तो फिर कुछ बताइए इनके बारे में I लंबा सफर है ,रास्ता अच्छा कटेगा और कुछ जानने को भी मिलेगा I ”  उन्होंने उत्सुकता दिखायी “ अच्छा तो फिर सुनिए ” मैंने इत्मीनान से बैठते हुए कहा

अगर शुरु से शुरु करें तो कहानी यूँ शुरु हो सकती  हैं  कि बहुत सालों पहले लोग अपनी जरुरत की चीजों को एक – दूसरे से अदला – बदली के माध्यम से खरीदा – बेचा करते थे, इसे “ बार्टर – सिस्टम ” कहा जाता था I कालान्तर में विकसित होते समाज को व्यापार के लिए एक मुद्रा की आवश्यकता महसूस हुई और फिर निर्धारित मूल्य के एक ठोस  धातु के रुप में सिक्का संसार में आया I अतएव, सिक्के  को हम कुछ  इस तरह से परिभाषित कर सकते हैं कि वस्तु – विनिमय के लिए आवश्यक धातु का एक ठोस टुकड़ा , जिसका निर्धारित  मूल्य सर्वमान्य हो, सिक्का कहलाता है I

पुरातत्विक साक्ष्यों , साहित्यिक आलेखों और इतिहासकारों के लेखन पर निगाह डालें तो  इस मुद्दे पर सबकी अलग – अलग राय है  कि सिक्का का आविष्कार किसने किया और सिक्के का जन्म कब और कहाँ हुआ ? अरस्तु की मानें तो पहला सिक्का प्राचीन ग्रीस में पैदा हुआ था I लेकिन  इतिहास के पिता माने जाने वाले “ हेरोडोटस”  कहते हैं कि “ लीडियन्स” ने सर्वप्रथम सोने और चाँदी के सिक्के बनाए I परन्तु विभिन्न पुरातत्विक प्रमाणों एवं साहित्यिक आलेखों की दावेदारी यह है कि सिक्कों का आविष्कार भारत में छठी और पाँचवी सदी ई. पू. के बीच में हुआ I वहीं चीन में भी लगभग इसी वक्त में सिक्कों का अस्तित्व  पाया गया है I अनेक तर्कों – साक्ष्यों की छान-बीन के बाद पुरातत्ववेत्ता और मुद्राशास्त्री इस बात पर सहमत होते हैं  कि सिक्कों का आविष्कार सातवीं और छठी सदी ई. पू. विश्व के तीन हिस्सों- लीडिया , चीन और भारत में लगभग एक साथ हुआ I परन्तु लीडिया से मुद्रित सिक्कों का बहुतायत में साक्ष्य प्राप्त होना -  इस कड़ी में उसकी दावेदारी सर्वाधिक मजबूत बनाता है I आधुनिक टर्की का  दक्षिणी – पश्चिमी भाग ही पहले  लीडिया कहलाता  था I 
 भारत के संबंध में कुछ पुरातत्ववेत्ता , इतिहासकारों के इस तथ्य से इत्तेफाक नहीं रखते कि भारत में छठी शताब्दी ई. पू. में सिक्कों का आविष्कार हुआ  I दरअसल मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता (2500 ई. पू. – 1750 ई. पू. ) से मिले अवशेषों में कुछ ऐसी आकृतियाँ प्राप्त हुई  हैं , जिन पर राजाओं , उनके प्रतीक चिह्नों और उनके देवी – देवताओं की छवियाँ उकेड़ी गई हैं I पुरातत्ववेत्ता कहते हैं कि संभव है कि ये आकृतियाँ तत्कालीन समाज में सिक्कों के रुप में प्रचलित हों I परन्तु इन  आकृतियों का धातु का ना होना और इन पर राजाओं के आधिकारिक ठप्पा के ना होने  की वजह से इतिहासकार  उनके इस दावे को नकार देते हैं कि वे तत्कालीन समय में सिक्कों के रुप में प्रचलित थे I इतिहासकारों के अनुसार , लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में छापा मुद्रा (Punch marked Coins) का आविष्कार हुआ था I अधिकांशत: चांदी से बने इन सिक्कों का निर्माण – मनुष्य , पेड़ , पहाड़ या जानवरों आदि की आकृति वाले खाँचे से सिक्कों पर दोनों तरफ जबरदस्त प्रहार कर उस पर ये आकृतियाँ उकेरकर किया जाता था I निर्माण की इस तकनीक के कारण ऐसे सिक्कों को छापा मुद्रा (Punch marked Coins) कहा जाता है I


महाजनपद काल से लेकर ब्रिटिश काल तक – लगभग सभी शासकों द्वारा सिक्कों में परिवर्त्तन और परिवर्द्धन के कार्य को जारी रखा गया  I कुषाण वंश के कनिष्क और गुप्त वंश के समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिक्के आज भी  पुराने सिक्कों के शौकीनों के पास देखने को मिलते हैं I सिक्कों की विकास यात्रा में शेरशाह सूरी ( 1486 - 1545 ) का अविस्मरणीय योगदान है I कहते हैं कि आधुनिक मुद्रा यानि “रुपया” को शुरु करने का श्रेय  शेरशाह सूरी को जाता है I सन् 1540-45 में  सूरी द्वारा जारी किए गए 11.34 ग्राम के चाँदी के सिक्कों के लिए “रुपया” शब्द प्रयोग में लाया गया था I दरअसल “रुपया” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द  “रुप्यकम्”  से हुई है जिसका अर्थ होता है – चाँदी I कालान्तर में जब भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत स्थापित हुई तो यहाँ भी महारानी विक्टोरिया की तस्वीर वाले सिक्के  जारी किए गए I


सन 1835  से भारतीय मौद्रिक प्रणाली में -
    एक रुपया = 16 आना
एक आना = 4 पैसे
          और एक  पैसा = 3 पाइस होता था I

इस तरह एक रुपया = 16 आना = 64 पैसे = 192 पाइस हुआ करता था I परन्तु 01 अप्रैल 1957 को जब भारत ने मुद्रा की दाशमिक प्रणाली (Decimalization) को अपनाया तो एक रुपया  को एक सौ नया पैसा में विभक्त किया गया I यहाँ नई मुद्रावली को इंगित करने के लिए पैसा के पहले “नया (New)”  शब्द का इस्तेमाल किया गया था I पुन: 01 जून 1964  से “नया”   शब्द को छोड़ दिया गया और रुपया अब सीधे- सीधे एक सौ पैसा  में विभक्त होने लगा I

“ एकदम सही कह रहे हैं आप I ”  ग्रामीण वृद्ध , जो अब तक मुझे बड़े गौर से सुन रहे थे , बोल पड़े - “ हमने देखा है आना पैसा , नया पैसा सब I अच्छा ये बताइए कि ये सिक्के आते कहाँ से हैं ?   “अपने देश में सिक्के चार सरकारी टकसालों में ढाले जाते हैं  जो कलकत्ता , मुम्बई , हैदराबाद और नोएडा में स्थित हैं  I  आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं I ”  मैं फिर से  शुरु हो गया I



1). न्यु अलीपुर , कोलकाता स्थित टकसाल :-
कोलकाता में पहली टकसाल की स्थापना सन् 1757 में हुई थी और दुसरी टकसाल की स्थापना   सन् 1790 में हुई I  ये दोनों टकसालें “मुर्शिदाबाद टकसाल  के नाम से सिक्के ढाला करती थीं I  कोलकाता की तीसरी  टकसाल , जिसे “ओल्ड सिल्वर मिन्ट” कहा जाता था , की नींव रखी गयी थी मार्च 1824 में और इससे 01 अगस्त 1829 से उत्पादन शुरु हुआ I सिर्फ तांबे के सिक्के ढालने के लिए सन् 1860 में ओल्ड सिल्वर मिन्ट से संलग्न एक “कॉपर मिन्ट” की स्थापना भी की गई I
                        न्यू अलीपुर में जिस टकसाल से अभी भी उत्पादन हो रहा है उसकी नींव सन् 1930 में रखी गयी थी और 19 मार्च 1952 को वहाँ से उत्पादन आरंभ हुआ I तब से यह भारत और अन्य देशों के लिए सिक्का एवं पदक के  निर्माण में निरंतर योगदान दे रही  है I  ध्यातव्य  है  कि कोलकाता  स्थित टकसालों से ढाले गए सिक्कों पर टकसाल का कोई भी पहचान चिह्न अंकित नहीं होता I
                                                    

2). मुम्बई , महाराष्ट स्थित टकसाल  :- 
भारत सरकार की दूसरी  टकसाल स्थापित है – स्वप्ननगरी मुम्बई में I इसकी स्थापना 1829 ई. में हुई थी I स्थापना काल में यह टकसाल बंबई प्रेसीडेंसी के नियंत्रण में थी परन्तु वित्त मंत्रालय द्वारा दिनांक 18 मई 1876 को जारी किए गए प्रस्ताव संख्या 247 के माध्यम  से इसका नियंत्रण भारत सरकार को स्थानान्तरित हो गया I इस  टकसाल में सन् 1919 में स्वर्ण का परिष्करण और सन् 1929 में चांदी का  परिष्करण भी आरंभ हुआ I  स्मारक सिक्के  (Commemorative Coins ) यानि किसी की स्मृति  में जारी किए गए सिक्कों का उत्पादन  मुम्बई स्थित टकसाल से 1964 में शुरु हु आ I पहला स्मारक सिक्का भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की स्मृति में 1964 में जारी किया गया था I यह जानना दिलचस्प  होगा कि सबसे अधिक मूल्य वर्ग का स्मारक सिक्का 1000 रुपये का है जिसे तमिलनाडु स्थित  भगवान शिव के वृहदेश्वर मंदिर ( स्थापना – 1010 ई. ) के एक हजार साल पूरे होने के अवसर पर 2010 में जारी किया गया था I
                           मुम्बई स्थित टकसाल से ढाले गए सिक्कों पर उनके जारी किए गए वर्ष के नीचे  हीरे (Diamond) जैसी आकृति या फिर अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षर “B”  अथवा “M” की आकृति अंकित की जाती है I
  
                                    

3). चेरियापल्ली, आंध्रप्रदेश स्थित टकसाल  :-
सिक्के ढालने के लिए भारत सरकार की तीसरी टकसाल चेरियापल्ली , आंध्रप्रदेश में स्थापित है I 80 एकड़ में फैली यह टकसाल दो जुड़वा शहर – हैदराबाद और सिकन्दराबाद का एक
प्रतिष्ठित संस्थान है I हैदराबाद यानि निज़ाम का शहर I “निज़ाम”  शब्द उर्दू भाषा के शब्द  “निज़ाम–उल- मुल्क” का संक्षिप्त रुप है , जिसका अर्थ होता है – क्षेत्र का प्रशासक I  मीर कमरुद्दीन सिद्दीकी मुगल शासक औरंगजेब के झंडे  तले सन् 1713 से 1721 तक मुगल साम्राज्य के दक्कन क्षेत्र का सूबेदार रहा था I परन्तु औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात जब मुगलों की शक्ति कमजोर हुई ,सिद्दीकी ने 1724 में हैदराबाद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और “आसफ ज़ाह”  की उपाधि धारण कर  हैदराबाद का पहला निज़ाम बन बैठा I आसफ ज़ाही राजवंश की सात पीढ़ियों ने 1724 से 17  सितम्बर 1948 तक हैदराबाद पर शासन किया Iफिर 06 अगस्त 1803 को मीर अकबर अली ख़ान ने सिकन्दर ज़ाह के नाम से तीसरे निज़ाम के रुप में हैदराबाद की गद्दी संभाली और 21 मई 1829 तक उस पर विराजमान  रहा I कहते हैं कि सर्वप्रथम सिकन्दर ज़ाह ने ही हैदराबाद में टकसाल की स्थापना करवाई थी I बाद में 13 जुलाई 1903 को सैफाबाद में एक टकसाल स्थापित की गई I चेरियापल्ली में स्थित टकसाल , जिसकी शुरुआत 20 अगस्त 1997 से हुई थी , सिक्कों के उत्पादन में अभी भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है I यहाँ से अभी भारत में परिचालन हेतु 50 पैसे , एक रुपये ,दो रुपये , पाँच रुपये  और 10 रुपये के सिक्के ढाले जाते हैं I
अन्य टकसालों की भांति हैदराबाद की टकसाल से जारी सिक्कों पर भी कुछ  विशेष चिह्न होता है I यहाँ के  सिक्कों पर उन के जारी किए गए वर्ष के नीचे एक पंचमुखी सितारा (Star ) या हीरे की आकृति के अन्दर एक बिन्दु ( A Dot in the Diamond ) अथवा खंडित हीरे ( Split Diamond )  की आकृति बनी होती है , जो उसे अन्य टकसालों में ढाले गये सिक्कों से भिन्न बनाती है I
                                

4). नोएडा , उत्तर प्रदेश स्थित टकसाल :- 
भारत सरकार की चौथी टकसाल स्थापित है – उत्तर प्रदेश के नोएडा  में I स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात स्थापित की जाने वाली यह पहली टकसाल है I इस टकसाल द्वारा सिक्कों का उत्पादन 01 जुलाई 1988 से आरंभ हुआ I भारत में सिक्का बनाने के लिए स्टैनलेस स्टील का प्रयोग सर्वप्रथम इसी टकसाल में किया गया था I सिक्कों की बढ़ती मांग को देखते हुए अप्रैल 2012 से यहाँ सिक्का ढलाई रात्रिकालीन सत्र में भी होती है और भारत के  अलावा दूसरे देशों के सिक्के भी उनकी मांग पर यहाँ ढाले जाते हैं I  नोएडा में स्थापित टकसाल में ढाले गए सिक्कों पर उनके जारी किए गए वर्ष के नीचे एक बिन्दु ( Dot ) का निशान होता है I


                                               

  जिस तरह  भारतीय टकसालों में विदेशी सिक्के ढाले जा रहे हैं ,  उसी तरह जरुरत पड़ने पर भारतीय सिक्कों की ढलाई भी विदेशी टकसालों में होती रही है I सिक्कों पर उनके जारी होने के वर्ष के नीचे अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षर  “C” का अंकित होना लोगों में उस सिक्के के कलकत्ता स्थित टकसाल से ढाले  गए होने का भ्रम पैदा करता है  परन्तु यह कनाडा के ओट्टावा स्थित रॉयल टकसाल 
( The Royal Mint ) से जारी होने की निशानी
 है I  

                                         
इसी तरह सिक्कों पर उनके जारी होने के वर्ष के  नीचे अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षर  “H”  का अंकित होना उसके यूनाइटेड किंगडम स्थित टकसाल से जारी  होने का द्योतक है I

                                             



इस प्रकार हम देखते हैं कि एक से दिखने वाले ये सिक्के अपने उत्पादक टकसालों की एक विशिष्ट पहचान अपने में छुपाए एक - दुसरे से कितने भिन्न होते हैं I 
  
 “ फिर कोई तो होगा जो टकसाल से पैदा हुए इन सिक्कों की देखभाल करता होगा ?  मतलब ..........” बीस – बाईस साल के  एक नवयुवक ने , जो अब तक चुप था , बीच में टोका I  “ हाँ ! हाँ ! यह जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक की है  I ” पानी की बोतल उठाते हुए मैंने कहा और प्यास से सूख रहे गले को पानी से तर करने लगा  I

भारतीय रिजर्व बैंक  और  सिक्के  :-
भारत में सिक्के ढालने का एकाधिकार एवं उनपर संपूर्ण स्वामित्व भारत सरकार का है  परन्तु भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के अनुसार परिचालन के लिए सिक्के भारतीय रिजर्व बैंक के   माध्यम से जारी किए जाते हैं I देश के विभिन्न भागों में स्थित टकसालों में ढाले गये सिक्के भारतीय रिजर्व बैंक के  अहमदाबाद , बैंगलौर , बेलापुर ( नवी मुम्बई ) , भोपाल, भुवनेश्वर , चंडीगढ़ , चैन्नई ,  गुवाहाटी , हैदराबाद , जम्मू ,जयपुर, कानपुर , कोलकाता , लखनऊ , मुम्बई , नागपुर, नई दिल्ली , पटना और तिरुअनंतपुरम् में स्थित कार्यालय और उप – कार्यालयों द्वारा आम जनता तक पहुँचते हैं I
                                     

 पचास पैसे तक मूल्य वर्ग के सिक्कों को “ छोटा सिक्का ” तथा एक रुपये एवं उससे अधिक  मूल्य वर्ग के सिक्कों को “ रुपया सिक्का ”  कहा जाता है I दूसरे शब्दों में –  वैसे सिक्के जो कागजी नोट के रुप में भी उपलब्ध हों , रुपया सिक्का कहलाते हैं I  अभी भारत में पचास पैसे , एक रुपया , दो रुपये , पाँच रुपये , दस रुपये  के सिक्के सामान्य परिचालन के लिए जारी किए जाते हैं I  कुछ दिन पहले तक  5 पैसे , 10 पैसे , 20 पैसे , 25 पैसे के सिक्के भी परिचालन में थे परन्तु 01 जुलाई 2011 से भारत सरकार के निर्देश ( भारत सरकार गजट अधिसूचना एस. ओ. -2978(ई.) दिनांक 20 दिसंबर  2010 ) के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पच्चीस पैसे और उससे कम मूल्य वर्ग के सिक्कों को परिचालन से बाहर कर दिया गया है I भारतीय सिक्का अधिनियम 1906 के सब-सेक्शन 15ए के अनुसार भारत सरकार एक राजपत्र जारी कर किसी भी मूल्य वर्ग के सिक्के को किसी पूर्व निर्धारित तारीख से परिचालन से बाहर कर सकती है I  


           
सिक्कों के निर्माण एवं परिचालन के लिए एक महत्वपूर्ण विधेयक भी है आइए , इसके बारे में भी जान लें I


सिक्का निर्माण विधेयक  2009 : महत्वपूर्ण तथ्य
सिक्का निर्माण विधेयक 2009 के तहत सिक्के तथा टकसाल से संबंधित सभी अधिनियमों यथा – धातु टोकन अधिनियम -1889 , भारतीय सिक्का अधिनियम -1906, कांस्य सिक्का (कानून निविदा) अधिनियम -1918, छोटे सिक्के ( अपराध ) अधिनियम –1971 को शामिल किया गया है I
इसके खंड -03 के अनुसार , भारत सरकार किसी भी स्थान पर टकसाल की स्थापना कर सकती है  एवं पूर्व स्थापित टकसाल को बंद   कर सकती है  I इसकी देख –रेख की जिम्मेदारी – वित्तमंत्रालय , आर्थिक कार्य विभाग  या उसके किसी प्राधिकृत अधिकारी की होगी I इसमें टकसाल की  परिभाषा   इस प्रकार से  दी गई है कि “  सरकार द्वारा प्राधिकृत एक ऐसा संस्थान जिसका कार्य सिक्के ढालना है ” I
खंड -04 के अनुसार   सिक्के अधिकतम 1000 रुपये मूल्यवर्ग तक के जारी किये जा सकते हैं I
खंड -08 के अनुसार  भारत सरकार एक राजपत्र जारी कर किसी भी मूल्य वर्ग के सिक्के को
किसी पूर्व निर्धारित तिथि से परिचालन से बाहर कर सकती है I  एवं
 खंड -13 के अनुसार अनाधिकृत रुप से  सिक्का नष्ट  करने या पिघलाने वाले को सात साल तक की कैद एवं जुर्माने का प्रावधान है I
                               
 “और हाँ ! अब तो भारतीय रुपया को भी एक प्रतीक चिह्न मिल गया है I ” नवयुवक ने  अपनी जानकारी का परिचय दिया  I  “हाँ ! बिल्कुल” कहते हुए मैंने अपनी बात आगे बढाई  I

सिक्कों पर रुपया का प्रतीक चिह्न :-
किसी मुद्रा का प्रतीक चिह्न उस मुद्रा का विशिष्ट वैश्विक पहचान बनाता है I  अभी विश्व में   केवल पाँच  ऐसी मुद्राएँ  हैं जिनके प्रतीक चिह्न हैं I  ये हैं – अमेरिकी डॉलर ($), जापानी येन (¥), ब्रिटिश पाउण्ड (£ ), यूरोपीय संघ का यूरो() और भारतीय रुपया (` ) I भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा आयोजित एक खुली प्रतियोगिता  द्वारा 15 जुलाई 2010  को धर्मलिंगम उदय कुमार द्वारा बनाया गया प्रतीक चिह्न ( ` ) को भारतीय मुद्रा का प्रतीक चिह्न घोषित किया गया  इस प्रतीक चिह्न में देवनागरी अक्षर “र”  और रोमन बड़े अक्षर “R” का मिश्रण है , जिसके उपरी हिस्से पर दो समानान्तर रेखाएँ खिचीं  हैं I  
                                                                        
                                   
 इस  प्रतीक चिह्न के पहले रुपये के लिए Rs अथवा  Re  का इस्तेमाल होता था I  28 फरवरी 2011 को अपने बजट भाषण में वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने यह घोषणा किया कि  अब से जारी होने वाले सिक्के रुपये के नए प्रतीक   चिह्न से युक्त होंगे , तभी से पचास पैसे, एक रुपये , दो रुपये ,पाँच रुपये और दस रुपये के सिक्कों पर इस  नए प्रतीक चिह्न को भी स्थान मिलने लगा I

 
                                                 

लोकोक्तियों और मुहावरों में सिक्का :-

लोकोक्तियों और मुहावरों की दुनियाँ में भी सिक्कों का सिक्का चलता है I सिक्का शुरुआत से ही
 मानवीय समृद्धि और सामाजिक – आर्थिक शक्ति के प्रतीक के रुप में प्रचलित है I वर्त्तमान की भौतिकतावादी संस्कृति में , जहाँ संस्कार और मूल्य – अर्थ की भेंट चढ़ चुके हैं , बिल्कुल सच   लगता है कि – बाप बड़ा ना भैया , सबसे बड़ा रुपया I हर जगह बस पैसा फेंक, तमाशा देख की धूम मची है I समाज में  आर्थिक विपन्न लोगों के लिए तो आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया  ही है जी I ऐसा नहीं है कि सामाजिक या राजनैतिक स्तर पर उन तक मदद पहुँचाने की कवायत   नहीं की जाती पर उनके लिए उसे पाना – चार आना मुर्गी , बारह आना मसाला जैसा ही है I सोलह आने सच वाली कहावत तो आपने जरुर सुनी होगी I अब जब “ आने” प्रचलन में ही नहीं हैं  तो सच का सोलह आना होना भी दुश्वार लगता है I खैर ! अगर हिन्दी मुहावरों की बात
करें तो वहाँ भी सिक्कों की मौजूदगी बहुतायत में  है I जैसे – सिक्का चलना , सिक्का जमाना , सिक्के के दो पहलू और खोटा सिक्का आदि I

 विचारों की श्रृंखलाएँ जुड़ती जा रही थी कि ट्रेन की सीटी ने मेरी तंद्रा तोड़ी I बाहर गाड़ी धीमी होते–होते रुक गयी I खिड़की से झाँका तो मेरा गंतव्य आ चुका था I सारा सामान समेटा और सबों को अलविदा कहते हुए ट्रेन से उतर गया I माथे पर पसीने की बूँदे चुहचुहा गयी थीं I रुमाल निकालने के लिए जब जेब में हाथ डाला तो फिर दो रुपया का वही सिक्का हथेली में आ गया I उलट- पुलट कर देखते हुए न जाने क्यूँ इस बार चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी I उसे हवा में उछालता – लपकता मैं मुस्काता हुआ घर की ओर चल पड़ा I 

सभी तस्वीरें  इंटरनेट से साभार .

      




        -  नील कमल